मेरा हृदय, घर है तुम्हारा
मेरे हृदय का एक कक्ष …
आरक्षित रहा जो तुम्हारे नाम…
ना भर सका तुम्हारे सानिध्य से ….
ना ही रिक्त तुम्हारी यादों से….,
तुम हो अब ‘स्थित वहाँ ‘
यहाँ मगर मेरे दिल में भी हो
और रहोगी भी सदा ….
तुम्हारी अमिट यादों में….!!!
Nice
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आपने समझा और सराहा यही बहुत है… बहुत बहुत धन्यवाद् जी आपका!
आप बहुत नियमित हैं और हम लापरवाह…
(वर्डप्रेस/ जेटपेक ने डांटकर बताया कि मेरी ओर से उत्तर देना शेष था तब भूल सुधार में लगे हैं!)
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Khubsurat 😊😊
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बहुत बहुत धन्यवाद् जी आपका!
(वर्डप्रेस/ जेटपेक ने डांटकर बताया कि मेरी ओर से उत्तर देना शेष था…!!!)
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वाह सर मज़ा आ गया बहुत ही अच्छा लिखा है आपने 👌👌👌👌
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धन्यवाद् …. आप पारखी हैं …
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Waah…laajwaab👌👌👌
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धन्यवाद्..
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धन्यवाद मित्र … प्रेम एक विशिष्ट अनुभूति है…. हर कोई इससे गुजरता है… अपना-अपना तरीका भी …
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bilkul sahi….
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