व्यर्थ की आशायें
आज की भोर भी
रोज सी ही थी
सुनहरी किरणें बिछी थीं …
और तुम ना थे….
http://lekhanhindustani.com/2017/08/05/व्यर्थ-की-आशायें
मगर तुम तो
दिन, शाम और रात में भी
होते ही कब हो….
बस
मैं ही होता हूँ
सदा की तरह
एकाकी
अ’मृत
व्यर्थ की आशाओं के साथ …
–
#सत्यार्चन
3 thoughts on “व्यर्थ की आशायें”
बिल्कुल सही ब्यर्थ की आशाएं फिर भी जारी है।
धन्यवाद् आपका!
swagat apka