वे राम थे…
इसीलिये बोले … “लक्ष्मण… जाओ राजनीति के महा पंडित से
राजनैतिक गुर सीख कर आओ….”
यह राम का दर्शन था…. अन्यथा…
यह पूछने भी कहा जा सकता था कि “उसने ऐसी धृष्टता क्यों की…”
रावण तब भी जबाब देता… किन्तु तब चर्चा उन कलुषित घटनाओं पर होती
जिनकी स्मृति भी पीड़ादायी है …. त्याज्य हैं…
यह था राम का दर्शन….
कि पत्नि का अपहरण करने वाले तक की विद्वता स्वीकारने में उन्हें
कहीं कोई संशय नहीं… ना हिचकिचाहट… ना विकार …
तब ही तो वे “श्रीराम” हुए ….