सुप्रभात 1
युवा होते-होते
ओढ़ ली हजार खामियाॅ
खूबी मगर एक रही तब भी बाकी
अपनी खामियों और खूबियों को
सुनने, जानने, पहचानने, मानने की खूबी !
फिर
यौवन का ढलना
और
खामियों का छूटना
चलता रहा
साथ-साथ
अब है वो परिपक्व होने को•••
सुप्रभात बस होने को है!
सुप्रभातम्!
जमाने में बतायें या छुपायें जी जो चाहे
जिया जानता है कि जी में तेरे क्या है!
SathyaArchan
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