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वास्तविकता छुपाना है••• अनुचित चित्रण तो बस बहाना है•••

वास्तविक इतिहास छुपाना है••• अनचित चित्रण तो बस बहाना है•••

विरोध का केवल बहाना ही अनुचित चित्रण है जबकि वास्तविक आवेश अपने इतिहास के प्रदर्शन के प्रति ही है•••

साथ ही आजकल  “अपने मुँह मियाँ मिट्ठू ” बनने का चलन चल निकला है!
अपने आपको अच्छा समझने, बताने , जताने में कोई बुराई भी नहीं है किन्तु अपने आपको अच्छा बताने के साथ-साथ अच्छा बनाने का प्रयास भी कर लिया जाये तो ‘सोने पे सुहागा’ हो जाये !
राजस्थान में तो आज से कुछ वर्ष पहले तक (और आज भी) बहुयें खरीद कर लाई जातीं रही हैं••• न्यून आर्थिक सक्षम घरों में 4-4 भाइयों की 1 ही संयुक्त पत्नी होती रही हैं! इससे भी बढ़कर वारिस देने के बाद बहू / पत्नी दूसरे जरूरतमंद को बेची भी जाती रही है- – –
मध्यवर्गीय परिवारों में भाइयों की अपनी-अपनी पृथक पत्नियां होना स्टेटस सिम्बल माना जाता रहा है!
यहाँ नवजन्मा शिशु कन्या होने पर शिशु को माँ के स्तनपान की जगह तम्बाकूपान करा माँ को शिशु का दर्शन शव रूप में ही कराया जाता रहा है!
राज द्वेष अथवा राज विस्तार प्रेरित युद्धों में विजेता सेनाध्यक्ष व सेना स्त्रियों को भी जीत के पारितोषिक के रूप में यथायोग्य उपभोग करते आये हैं !
विजयी सेनाध्यक्षों ने अनेक अवसरों पर राजकुमारियों के बदले पराजित को जीता हुआ राज और / या अभयदान दिया है! जोधाबाई का ज्वलंत उदाहरण तो सर्वविदित है!
इतने “समृद्ध सामाजिक परिवेश” के हालिया विगत वाली “बौद्धिक समृद्ध” जातियों को अपने परिवेश के सार्वजनिक प्रदर्शन से व्यक्तिगत क्षति जैसा अनुभव होना स्वाभाविक ही है••• और अपने “सर्वथा उचित परिवेश” के सुधार पर विचार का तो प्रश्न ही नहीं उठता!!!
*काश कोई “जागरूक सेना” “आंतरिक जनजागरण अभियान चलाये”••• इन नासमझ कुरीतियों को मिटाने का बीड़ा उठाये••• कोई समझे ••• सबको  समझाये••• जगाये•••*

  • – #सत्यार्चन
traffictail
Author: traffictail

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