याद नहीं जाना कब से
होती है दिल में धड़कन !
ना याद मुझे कब धड़कन बन
दिल में बस बैठा मेरे वतन!
जाँबाजों की जाँवाजी के किस्से पढ़- सुन मैं बड़ा हुआ•••
मुझे यही लगता प्रहरी बन, हूँ सीमा पर मैं खड़ा हुआ •••
करने मेरा ध्यान भंग दुश्मन ने दोस्त का छद्म रचा
सर मेरा काट लिया धोखे से
दुश्मन पैरों में रोंद रहा•••
फिर मैं ही बदले में घुसकर, दस -दस शीश हूँ काट रहा •••
मेरे शौर्य पर खुद मैं ही पूरे भारत भर में नाच रहा!
मैं ही जीत के जोश में, होश खो, अपनों से हूँ उलझ बैठा•••
अपनों पर ही टूट पड़ा और अपनों से ही कुटा पिटा !
अब काट रहा हूँ खुद मैं ही और मैं ही हूँ खुद नित कटता!
गैर तो कोई दिखता नहीं•••
देश मेरे दिल में बसता!
मैं ही हूँ जो बनता हूँ..
हूँ मैं ही जो रहता मिटता…
#SathyaArchan
(ऊपर वर्णित “मैं” अकेले सत्यार्चन के लिए नहीं वरन
उन सबके लिए
जिनके दिल में भारत धड़कन बन धड़कता है!)