मनीषियों द्वारा कुछ शब्दों, नामों, विभूतियो को परिभाषित किया गया है!
जिनमें एक हैं-
“बुद्ध!”
गुरूजन कहते हैं…
“बुद्धि के अनुरूप” व्यवहार करने वाला ही “बौद्ध” है!
बुद्धि अनुरूप होना अर्थात विचारवान होना!
सुविचारी होना!I
शुभ करने वाला होना!
जो जितना शुभंकर वह उतना ही बुद्ध है !
तथागत बुद्ध, अपने भीतर उपस्थित मानवीय दोषों (यथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि) को समूल नष्ट कर सके थे!
वे मानवीय विकारों से रिक्त हो चुके थे!
वे सम्पूर्ण शुभंकर थे!
वे बुद्ध थे!
“बुद्ध” सम्पूर्ण मानवजाति का आव्हान करते रहे…
कर रहे हैं …
और करते ही रहेंगे..
जब तक सब बुद्ध ना हो जायें!
जब तक सारा संसार स्वर्ग ना हो जाये!
वे पुकार रहे हैं!
“आओ! …. बुद्ध हो जाओ!”
“हां तुम भी बुद्ध हो सकते हो!”
“बस इच्छा करो… आओ… जरा सा प्रयास करो …!”
“आओ ! शोक रहित हो जाओ!”
“आओ! दोष रहित हो जाओ!”
“बहुत कठिन नहीं है … आओ पग उठाओ …
कदम बढ़ाओ…
आओ.. !
आओ…
बुद्ध हो जाओ!”
सुबुद्ध