गधों की दुनियाँ!
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अनेक मजाक बनते हैं…
पर हकीकतें भी हैं अनेक…
जो नहीं डरता
उपहास से…
दुत्कार से…
हार से …
वो ‘महावीर’* बन जाता है…
और…
जुझारू
कभी ना कभी
‘गौरी’** की तरह..
जीतना सीख ही जाता है…!
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वक्त पड़ने पर तो
हर कोई…
गधे को बाप बनाता है..
मगर आजकल
सोने चाँदी से लदा
लंगड़ा या तगड़ा भी
गधा…
बहुतों को ललचाता है…
ये अलग बात है कि…
गधा;
भले हो गधा
मगर
सोने चांदी से हो लदा
तो कुछ ज्यादा ही इतराता है…!
बेचारा
भूल जाता है..
कि गधा तो बस
लादने के काम आता है…
लदान;
लादने वाले की मिल्कियत है…
जो लादता है
उतारता है…
लदान उसी का कहलाता है…!
टूटती रीड़ तक
लदान से लदा फदा
इतराता रहता है
बेवजह ही …
गधा!
-‘सत्यार्चन’
(*महावीर- महावीर सिंह फोगाट)
(**गौरी- मोहम्मद गौरी)