हम भी हुए हैं कभी इस्तेमाल…
वो सबके उतने ही अपने हैं
जितने मुझे मेरे दिखते थे
है उनकी शान निराली बड़ी…
वफा से नाता कोई रखते नहीं
पर जफा से पहले
गहरी वफा
मनवाने का फ़न भी है उन्हें हासिल
मैं भी हुआ हूँ कभी उनका शिकार ..
वैसे ही होकर इस्तेमाल
जैसे तुमको किया जा रहा है आज…
.
कभी
मेरी भावनाओं…
मेरी आस्थाओं…
मेरी नेकियों…
मेरी अच्छाइयों को भी..
बहुत इज्ज्त दे सराहा गया…
मैं तो पुकारता फिरता था गली गली
बहुत प्यार से
मुझको ही पर पुकारा गया …
एक सागर फिसला था हाथ से मेरे
तब से जरा पहले बहुत तरसा था
कतरे कतरे का कायल था मैं तो
सुराही ही हाथ में तब आई थी
हम पी पी कर गिर जाते
फिर कोशिश कर प्यास जगाते
होकर दीवाने हम भी उनके
गीत गा गाकर बहुत सुनाते थे ..
जैसे आज तुम गाते हो…
कभी
हम भी थे उनके कंठ हार
जैसे तुम सजते हो आज
पर गजरों हारों का हश्र वही
सीनों पर चढ़ने का करते गुमाँ
मुरझाते ही उतार फेंके जाते
पर तुम तो खिले हो अभी अभी
तुम ही आज के हो मौजू
खिलकर खिला भी सकते हो
झुककर मिटा भी डालोगे
मुरझाओगे तो पर तुम भी कभी …
उतारे नकारे तो जाओगे
नया पुष्पहार तो आयेगा ही
तुम भी बदले तो जाओगे
लगा लगन गगन तक कर कोशिश
फिर भी हो तो तुम भी रुमाल
या गजरा या हो कंठ हार
तुम भी वहीं आओगे वहीं कल
आज जहाँ उपयोग के बाद
पड़ा हूँ मैं
दफ्न के इंतजार में..
नहीं नहीं मरा तो नहीं हूँ मैं…
लेकिन जिंदा भी कहाँ बचा हूँ मैं!
–
– ‘एक आवारा मन’