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सुधारवाद! विकासवाद!! और विनाशवाद!!!

सुधारवाद! विकासवाद!! और विनाशवाद!!!

(शुभ हेतु साथ दीजिएगा ताकि हर आशंकित #आगत असत निर्मूल हो!)

 

लगभग 100 साल पहले हिंदुजन समुदाय की सांस्कृतिक पृष्टभूमि को मिटाकर हिंदुओं को अंग्रेजों जैसी रीतिनीति अनुरूप नागरिक बनाने की पहल प्रारंभ हुई थी …!

तब भी शुरुआत नारियों की दुर्दशा को मुद्दा बनाकर की गई थी ! बाल-विवाह, सती प्रथा, विधवा से अमानवीय व्यवहार जैसी सामाजिक कुरीतियों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित किया गया जिससे राजा राम मोहन राय जी, पंडित मदनमोहन मालवीय जी जैसे सशक्त हिंदू नेता इन कुरीतियों के समापन के लिए संकल्पित हुए ! जिस सती प्रथा के उन्मूलन का बीड़ा उठाया गया वह बहुत अधिक प्रचलित नहीं थी … ! सती प्रथा को रोकने का आंदोलन शुरू होने के पिछले 10-20 साल में भी पूरे देश में 10 सती का इतिहास भी ना मिलता किंतु फिर भी 3-4 सती हुई स्त्रियों का करुण वर्णन लगातार प्रचारित कर हिंदू नारियों और बुद्धि वादी पुरुषों को हिंदुओं में नारियों से अन्याय की अवधारणा जगाई गई और हिन्दू नर-नारी विभाजन हेतु जन-जागरूकता के नाम पर विषैले विचार का बीजारोपण किया गया …! नारी सम्मान का विषय उछाल कर हिंदु समाज के परिवारों के अंदर ही वैमनस्य के बीज बोये गये !

सती प्रथा उन्मूलन संबंधी कानूनी शस्त्रास्त्र से सुसज्जित होने के बाद आंदोलन सशक्त तरीके से विधवा पुनर्वास, बाल विवाह के विरुद्ध सक्रिय हुआ और जल्द ही इसमें भी सफलता मिली. किंतु आंदोलन का समापन ना तो हो सकता था ना ही हुआ … जागृत हिन्दू समाज में कुरीतियों के बाद रीतियों के भी विरोध का चलन चल निकला… और लगभग 100 साल में ही भारतीय सांस्कृतिक समृद्धि से कंगाली तक पहुंच गई ! आज की भारतीय नारी विवाह रहित संसर्ग की पैरोकार, गर्भधारण की विरोधी, परिवार प्रथा में विश्वास ना रखने वाली हो गई है !

जिन विषयों से शुरुआत हुई.. वे सशक्तिकारक बताये गये लेकिन परिणाम विनाशकारी ही निकले ! तब कुछेक कुरीतियां तो थीं किन्तु बाकी की ऐसी रीतियां प्रचलित थीं जो हिंदु सशक्तीकरण का आधार थीं.

भारत की सांस्कृतिक पहचान थीं!

उन रीति/ कुरीतियों के समापन से पहले उनके उन्मूलन से होने वाले दुष्प्रभावों पर ना कोई विचार हुआ ना ही कोई व्यवस्था बनाने के प्रयास!

 

इससे मानवीय आवश्यकताओं ने सामाजिक असंतुलन पैदा किया और अनेक नये सामाजिक अपराधों और अपराधी प्रवृत्तियों को जन्म दिया !

जैसे “माँग दहेज”, बलात्कार, विशालकाय बारात, पुनर्विवाह ना कर पाने वाली विधवाओं का दुराचार (जैसे पूर्व पति की पेंशन ही विधवा के पुनर्विवाह में अवरोध बनी रही!), बाल-विवाह, नगरवधु प्रथा, वैश्यावृत्ति को गैरकानूनी बनाये जाने की व्यवस्था बनाने वालों में शायद एक भी व्यक्ति ऐसा ना रहा होगा जो सिद्ध साधु संत या बाल-विवाहित ना हो ! यानी एकल पुरुष या एकल स्त्री की नैसर्गिक आवश्यकताओं को समझे बिना ही प्राकृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के रास्ते बंद कर दिए गए!

यह कुछ ऐसा ही जैसे कल नया कानून बनाकर देश/प्रदेश में सारे बार, भोजनालय, रेस्टोरेंट, भोजशाला, नाश्ता घर बंद कर दिए जायें … तब क्या होगा … भूखे लोग कहां जायेंगे? निश्चय ही दूसरे घरों में घुसेंगे…! अनुनय विनय छल या बल से मगर भूख तो मिटायेंगे ना ? जैसे शराबबंदी वाले प्रदेशों में कभी शराब बंद ना हो सकी वैसे ही सबको एक लाठी से हांकना ना कभी संभव था ना होगा !

सामाजिक तानेबाने से छेड़छाड़ से सुपरिणाम की कम और दुष्परिणाम की संभावना बहुत अधिक है!

.हिंदू समाज के विनाश के अधिकांश परिणाम तो सामने आ ही चुके है़ं या आते जा रहे हैं. केवल परिवार प्रथा के समापन की घोषणा बाकी लगती है! 

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हिन्दू समाज के समन के बाद मुस्लिम संस्कृति भी वाधक बनी हुई है अब उनपर भी काम शुरू हो रहा है…!

#जय_सनातन! #जय_श्रीराम!!
#जय_भारत #जय_भारती!!
#भारत #भारती, #भारतीय_प्रचलन, #अंतर्चेतन, #नियति,  #प्रकृति, #संस्कृति, #परिवर्तन, #प्रगति,  #राजनीति!

 

 

Sathyarchan VK Khare
Author: Sathyarchan VK Khare

यथार्थ ही अभीष्ट हो स्वीकार विरुद्ध हो भले..!

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