प्रत्येक व्यक्ति को जीवन शक्ति देकर ‘उसने’ मानव रूप दे, अपना प्रतिनिधि बनाकर संसार में भेजा है!
ईश्वरीय आदेश के भीतर सीमित फिर भी अपरिमित कर्म सक्षम मानव, अनेक अवसरों पर उस परमसत्ता की अधीनता से स्वतंत्र हो स्वच्छंद आचरण करने की हास्यास्पद चेष्टा करने लगता है… और तब कुछ भी नहीं कर पाता!
किंंतु उस अपरिचित की सत्ता के और अपनी सीमितता के स्वीकार के साथ मानव; ‘उसके’ दिये विवेक के सर्वोत्तम प्रयोग, अर्थात शुभ हेतु, प्रयारत रहे तो, हर मानव उसका सच्चा प्रतिनिधि हो सकता है! ‘उसके’ ही जैसा हो सकता है!
हम भी प्रयासरत हैं! शेष परीक्षक फलदाता पर है!
धरती पर तो मानव ही सर्वाधिक सशक्त है! वो ही संसार के संरक्षण में भी सक्षम है और भक्षण में भी!
निर्णय क्षमता हेतु एक स्वस्थ मस्तिष्क भी “‘उसने” दिया है! उचित अनुचित के मापदंड भी!”
फिर कैसे कर सकता है जन …
अनुचित पथ का चयन!