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सबसे बड़ा दर्द

सबसे बड़ा दर्द
आईये आपको आपके बहुमूल्य हितसाधक श्रोत से मिलवाता हूँ …

जो होंगे तो आपके आसपास ही… मगर आप शायद ही देख पा रहे होंं…
मैं जिनकी बात कर रहा हूँ वो आजीवन अवसर और आपदा के सटीक पूर्वानुमान लगाने में अधिकतम सक्षम रहे हैं! हर समस्या के बहुविकल्पीय, बहुस्तरीय व सर्वश्रेष्ठ निदान भी होते हैं उनके पास… !
वो बार बार बोलते, बताते, समझाते, मनाते, झल्लाते रहते हैं…! वे बहुत जिंदादिल हैं भले दिखाते ना हों… वे उनके गिने चुने 4-6 अपनों के छोटे से परिवार की अनदेखी से भी हारे नहीं… ना पथभ्रमित हुए ना पथभ्रष्ट … हाँ मगर उनके अंतिम दिनों तक उनके परिवार की सदस्य संख्या बहुत बड़ी  हो अनंत विस्तारित हो चुकी होती है..! हालाकि उनके 1% अपनों ने भी उनके उस ज्ञान का लाभ नहीं लिया होगा जिसका उपयोग किया जाता तो कोई 1 भी करीबी कभी परेशानी में ना पड़ता.. उन्हें कई बार तो उनके स्वयंं के निजी हितों के लिये भी वे छोटी छोटी व्यवस्थायें तक अपनों से कराने में बड़ी कठिनाई होती रही है जिससे किसी अन्य को कोई हानि नहीं हो सकती थी! वे उनके ज्यादातर अपनोंं को उनके अपने ही हितों को साधने को मना ना सके… और जब भी वे कहीँ दूर चले जायें तो उनका मूल्य पता तो लग जाता है…!
मैं जिनकी बात कर रहा हूँ वे मेरे पूर्वज थे… आपके पूर्वज भी… जो अब भी हैं या फिर नहीं हैं…
मगर उन जैसा ही… कोई ना कोई.. आपके आपपास भी जरूर होगा… खोजिये… अगर वो समय रहते समझ नहीं आ पाते तो .. घाटा ही घाटा है…!


सबसे बड़ा दर्द यह है कि जो जानकार हैं वे भी सरल सहज हो हितसाधनों की बात सामने नहीं रख पाते ….

और उससे भी बड़ा दर्द यह है कि अधिकांश सामान्य जन अपनी अकिंचनता के इतने अधिक अनुरागी हैं अपनी तुच्छता के प्रति इतनी गहराई से विश्वस्त हैं कि उन्हें… अपने आप में… अपनों में और अपने आसपास वालों में से भी किसी में भी कतई किसी विशिष्ट योग्यता… किसी खासियत, किसी महानता की…. ना तो आशा होती है ना ही पहचान ना ही विश्वास!

जबकि लगभग सभी के आसपास कोई ना कोई गुणवान मौजूद जरूर होता है… जो अक्सर गुमनाम हुआ करता है!
मैंने अनेक ऐसे गुणवान महान लोगों से भेंट की है कुछ के विषय में सर्वे भी किया है… जिन्हें ‘बाहर से’ बड़ा सम्मान मिलने के बाद ही उनके आसपास मौजूद लोगों में से अनेक ने थोड़ा बहुत सम्मान देना शुरू किया हो… इनमें सबसे उल्लेखनीय नाम है कैलाश सत्यार्थी जी का जिन्हें नोबल प्राइज से सम्मानित किये जाने से पहले उनके मोहल्ले वालों के लिए वे एक असंतुलित मस्तिष्क वाले संदिग्ध व्यक्ति ही थे! अरविंद केजरीवाल भी ऐसा ही एक नाम हैं… ! राष्ट्रमंडल खेलोंं की स्वर्ण पदक विजेता व द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित अनुया लोणकर जी भी ऐसी ही एक व्यक्ति हैं… जिनसे मेरा सम्पर्क रहा है या है…!
इसके ठीक उलट भी देखा है मैंने… कुछ घरानों में … कुछ कौमों में भी… चलन है कि वे अपने परिचित के परिचित की भी… छोटी छोटी उपलब्धियों तक को… बहुत अच्छी तरह सराहकर सबके सामने लाकर उसे सम्मान के शिखर तक ही पहुंचा देते हैं.. वो बड़ी शान से अपनों की उपलब्धि/ योग्यता को अपनों के सामने ला रहे होते हैं … बता रहे होते हैं…!

हमारे मोहल्ले में ही रहते हैं.. हमारे दूल्हे भाई के करीबी दोस्त हैं… हमारे मामू की ससुराल से ही हैं… वगैरह वगैरह…

अब अगर आपको भारी भरकम फीस चुकाकर किसी वर्कशॉप में समय खर्चने से बचना है तो शुरुआत अपने आप से करें… खुद का फिर अपनों का पुनर्मूल्यांकन करें… अपने आप की… अपनों की… (अपने बड़ों के साथ साथ अपने बच्चों की भी) योग्यताओं को बारीकी से जाँचें… अगर ठीक से देख पाये तो आपके स्वयंं के सहित हर एक में कम से कम एक अनौखा, नया, विशिष्ट गुण विशिष्ट योग्यता आपको जरूर दिख जायेगी… आपके या आपके पड़ौसियों के यहाँ ग्रेंड पेरेंट्स… ग्रेट ग्रेंडपेरेंट्स बन चुके लोग भी रहते हों तो आपको तो खजाना ही मिल जाना है.. सब इसी तरह सब में अगर खोजकर निकालें…. सबके सब सद्गुरण सब सराहें …सब एकदूसरे सद्गगुण अपनाने का प्रयास करें… तो…

स्वर्ग बन जाये ये दुनियाँ!

फिर सबसे बड़ा दर्द किसी को कभी मेहसूस ही ना हो…!

traffictail
Author: traffictail

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