लाज़िमी
क्यों ना बदलता मैं
क्यों बदलती ना मेरी दुनियाँ…
हकीकत की धरती पर
कभी बसता था..
अपना जहाँ…
कुछ ना मांगकर भी तुमने
मांग लिया था आसमां…
यूं तो थे गिने चुने
वे सपने
जो तुमने बुने
पर सब के सब सपनों में
चाँद तारे ही तो थै चुने…
जब धरती पर ही
ठहरे ना तुम..
हुए गुम…
क्या करते हम…
लाजिमी था बदलना मेरा
बदलनी मेरी दुनियाँ!…!