मेरे मुसलमान दोस्तो;
आप लोगों की धार्मिक भावनाओं को पूरा सम्मान देते हुए अर्ज कर रहा हूँ कि हज करने तक तो सही है…
मगर साल दर साल उमराह को जाने से भी बेहतर क्या यह नहीं है कि आप अपने से कम दौलतमंद लोगों (या अपने जैसे ही लोगों की ही) जरूरतों में काम आ सकें ? तो शायद अल्लाह ताल्हा आपसे और ज्यादह खुश होंगे!
मेरे और आपके मजहब के ज्यादातर लोग खुदगर्जी के खैरख्वाहों के लिखे तर्जुमों की बदौलत, वक्त के साथ निहायत खुदगर्ज होते चले गये…! और आज पूरी दुनियां ही खुदगर्ज बन गई!
हज और उमराह की ख्वाहिश आप केवल खुद के ही मुस्तकबिल को शानदार बनाने के लिए नहीं करते हो क्या? और खुद के साथ सबकी बेहतरी को सोचना ज़्यादा बड़े शबाब का काम है ना ?
तो दीन दुनियां के काम आओ..
दुनियाँ को अपना बनाओ…
तब तो सबका मालिक तुम्हारी कितनी ही पुश्तों तक की जिंदगी नेमतों से भर देगा!
बाकी आपका मजहब है…
मेरे धर्म के लोगों के मूर्ति को दूध चढ़ाने की ही तरह ही,
आप भी,
अपने उमराह को,
जरूरतमंदों की मदद से बेहतर समझ तरजीह देते रह सकते हैं..!
आपसे कम जहीनों के जानिब से आपको जो समझाया जाता है वही समझते रह सकते हैं!
गुस्ताख़ी माफ़.. अगर बुरा लगे तो माफी चाहता हूँ…
मगर एक और बात भी कहना चाहूंगा कि
कुर्बानी की रिवायत हुजूर इब्राहिम की, अपनी जान से भी अज़ीज़ अपने बेटे की कुर्बानी से शुरू हुई…!
अब आप वो तो करते नहीं..
ना ही कर सकते…
ना मेरी नज़र में करना ही चाहिए..
मगर हुजूर इब्राहिम साहब से थोड़ी छोटी यानी खुद की कुर्बानी पर तो सोच सकते हो ना…?
आप; आपकी अपनी एक छोटी सी कुर्बानी…
ब्लड डोनेट करके तो दे ही सकते हो ना?
तो दीजिए!
आपकी अपनी जाती कुर्बानी! जो आप आराम से, हर साल भी दे सकते हो!
अच्छे सच्चे और समझदार मुसलमान बनिये ना? ज़हालत को कब तक ओढ़े रखियेगा? किताबों में लिखे के सही मायने निकालिए आज के हालातों में ढालिये और अमल कीजिए!
फिर आपको दुनियाँ को मुसलमां बनाने की जरुरत नहीं पड़ेगी.. बनी हुई ही दिखेगी… सब अपने लगने लगेंगे… अगर मुसलमान, केवल तालीम हासिल करने की तरफ ही ठीक से बढ़ जायें… तो कल वे सबके प्यारे और खुदमुख्तार भी हो ही जायेंगे!
कोशिश कीजिएगा!